गांव में गोलगप्पे बेचने वाला लड़का बना ISRO में इंजीनियर: पढ़िए रामदास मारबड़े की मेहनत और जिद की प्रेरक कहानी!
महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव का लड़का, जो कभी अपने परिवार का पेट पालने के लिए सड़क किनारे गोलगप्पे बेचा करता था, आज देश की प्रतिष्ठित अंतरिक्ष एजेंसी ISRO (Indian Space Research Organisation) में बतौर इंजीनियर काम कर रहा है। यह कहानी है रामदास मारबड़े की, जिन्होंने कठिनाइयों को अपनी ताकत बनाया और अपने सपनों को साकार करने की मिसाल पेश की।
गरीबी में बीता बचपन
रामदास मारबड़े महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक छोटे से गांव से आते हैं। उनका परिवार बेहद गरीब था। बचपन से ही उन्होंने आर्थिक तंगी देखी और पढ़ाई के साथ-साथ अपने पिता की मदद के लिए गोलगप्पे का ठेला लगाया। स्कूल से लौटने के बाद रामदास गोलगप्पे बेचते, ताकि घर का खर्च चल सके।
मेहनत और लगन से बदली किस्मत
रामदास पढ़ाई में शुरू से ही तेज थे, लेकिन संसाधनों की कमी और आर्थिक परेशानियों के चलते उनका सपना अक्सर खतरे में पड़ जाता था। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। दिन में स्कूल और काम, और रात में पढ़ाई – यही उनका दिनचर्या बन गई। उनका सपना था कुछ बड़ा करना, अपने गांव और परिवार का नाम रोशन करना।
इंजीनियरिंग की राह में चुनौतियां
रामदास ने 12वीं कक्षा में अच्छे अंक हासिल किए और इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। लेकिन कॉलेज की फीस, किताबें और रहन-सहन की व्यवस्था करना आसान नहीं था। कई बार उन्होंने भूखे पेट दिन बिताया, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। उन्होंने स्कॉलरशिप्स, ट्यूशन और पार्ट टाइम काम से अपनी पढ़ाई पूरी की।
ISRO में चयन – एक सपना सच हुआ
रामदास की मेहनत रंग लाई जब उन्हें ISRO में बतौर इंजीनियर चयनित किया गया। आज वे देश के अंतरिक्ष मिशनों में योगदान दे रहे हैं और अपनी कहानी से हजारों युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना है, “अगर आपके सपनों में दम है और मेहनत करने का जज्बा है, तो कोई भी हालात आपको रोक नहीं सकते।”
प्रेरणा के स्रोत
रामदास मारबड़े की कहानी सिर्फ एक सफलता की गाथा नहीं है, बल्कि यह संदेश देती है कि गरीबी, अभाव और कठिनाइयाँ भी आपके सपनों के आड़े नहीं आ सकतीं – अगर आपमें मेहनत करने की जिद और खुद पर भरोसा है।
निष्कर्ष:
रामदास की यह यात्रा हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़ा सपना देखता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि रास्ते चाहे जितने भी कठिन हों, अगर इरादे मजबूत हों तो मंज़िल मिल ही जाती है।