INS खुकरी समुद्रतल में बैठा एक तपस्वी
11 फरवरी कोई सामान्य दिन नहीं था। इस दिन अद्भुत घटना हुई जिसे उत्सव की तरह मानना चाहिए था। लेकिन ये चुपचाप निकल गया। 9 दिन पहले 11 फरवरी को हमारी नौसेना ने अरब सागर के तल में जाकर चिर निद्रा में लीन भारतीय नौसेना के युद्धपोत खुकरी को पुष्पांजलि दी है।
दीव के तट से 100 मील दूर 80 मीटर की गहराई में खुकरी विश्राम कर रहा है। यह उसके आखिरी सफर का आखिरी पड़ाव है। 1971 के युद्ध में जलमग्न हुआ खुकरी हमारा एकमात्र युद्धपोत है जिसे स्वतंत्र भारत की नौसेना ने लड़ते हुए खोया है। भारत-पाक युद्ध की तमाम स्मृतियों में यह सबसे भावुक कर देने वाली स्मृति है।
पाकिस्तानी टॉरपीडो का शिकार युद्धपोत खुकरी हमारे कमांडिंग ऑफिसर कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला, 18 नौसेना अधिकारी और 176 सैन्य नाविकों के साथ पानी की गहराइयों में समा गया। 9 दिसम्बर 1971 की रात जल के बाहर खुकरी की आखिरी रात थी। जल समाधि का वह दृश्य कैसा विकराल रहा होगा! शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता। चित्र में जलमग्न दृश्य देखकर शायद कुछ महसूस कर सकें।
आईएनएस (इन्डियन नेवल शिप) खुकरी और उसमें सवार दल का बलिदान कभी सार्वजनिक चर्चा में नहीं आता। लेकिन नौसेना उसे कैसे भूल सकती है! 11 फ़रवरी को नौसेना डाइविंग सपोर्ट शिप आईएनएस निरीक्षक के गोताखोर गहरे पानी में खुकरी के समीप पहुंचे। स्थिर जल में मौन तपस्वी की तरह आधी सदी से समाधि लगाए इस युद्धपोत को पुष्पांजलि देकर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
खुकरी को तीन पुष्पांजलियाँ दीं गईं- एक सैनिक दल के परिजनों की तरफ से, दूसरी भारतीय नौसेना के सभी रैंकों की तरफ से और तीसरी ऑपरेशनल कमांडर, पश्चिमी नौसेना कमान के कमांडर-इन-चीफ की तरफ से।
1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की थल सेना और वायु सेना के शौर्य और बलिदान की अनगिनत कहानियाँ हैं जो आज भी उसी अभिमान से सुनी और सुनाई जाती हैं। इस लड़ाई में पूर्वी पाकिस्तान अलग हुआ और बांग्लादेश के नाम से अस्तित्व में आया। पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी भाग के बीच स्थित होने के कारण भारत की थल सेना और वायु सेना की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन निर्णायक युद्ध जलीय मार्ग में हुआ था जब हिन्द महासागर में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देने के लिए पश्चिम छोर से अपना सातवां बेड़ा उतारा। और ब्रिटेन ने भी अपने 'ईगल' बेड़े को अरब सागर से हिन्द महासागर की ओर भेज दिया। लक्ष्य था पूर्वी छोर पर बंगाल की खाड़ी में तैनात भारतीय युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को नष्ट करना।
रूस ने भारत के समर्थन में परमाणु पनडुब्बी सहित अपना 40 वां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में उतार दिया। हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी के बीच पानी में एक रेखा खिंच गयी थी, जहाँ आरपार की लड़ाई की तैयारी थी। एक तरफ भारत के लिए रूस खड़ा था, दूसरी तरफ पाकिस्तान के लिए अमेरिका और इंग्लैंड।
भारत-पाक युद्ध का निष्कर्ष सभी को पता है- 93 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण। यह दुनिया का अकेला ऐसा ऐतिहासिक आत्मसमर्पण है। पाकिस्तान के सैनिकों ने अपने गन, राइफल और कंधे पर लगे सितारे उतारकर भारत की जमीन पर रख दिए थे। इस जमीन पर सर झुकाकर आत्मसमर्पण किया।
लेकिन इस कहानी के बीच में भी कई कहानियाँ हैं। उनमें से एक है आईएनएस खुकरी के बलिदान की कहानी। 1971 के भारत-पाक युद्ध की गौरवगाथा इस कहानी के बिना पूरी नहीं होती है।
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भारत-पाक युद्ध का पहला दिन 3 दिसंबर- पाकिस्तान ने 2800 की फौज और टैंकों के साथ तेज़ी से बढ़ते हुए जैसलमेर के लोंगेवाल में सैनिकों पर ज़मीनी हमला किया, और टैंकों से गोले बरसाने शुरू किये। संख्या बल में कम, यानि मेजर कुलदीप सिंह के साथ हमारे 120 जवान, और कमजोर शस्त्रबल यानि जीप पर एक छोटी तोप, और टैंक उड़ाने के लिए सिर्फ 3 माइंस के साथ भारत ने बड़ी युक्ति से यहाँ पाकिस्तानी फ़ौज को धूल चटाई। असली माइन्स के अलावा रेत में खाली टिन के अनगिनत डब्बे आधे-आधे दबाये। माइंस की चपेट में आने से पाकिस्तान के जो टैंक फट गए वो आज भी हमारे राजस्थान में पश्चिमी सीमा के पास उसी हाल में देखे जा सकते हैं। बाकी टैंक और सैनिक भ्रम में खाली डब्बों के डर से आगे नहीं बढ़े। हमारे 2 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।
रात बीती, 4 दिसंबर आया। अँधेरे में लड़ने में अक्षम हमारी वायु सेना को सुबह होने का इंतज़ार था। और पाक फ़ौज़ की रही-सही कसर उसने पूरी कर दी। थल और वायु सेना ने मिलकर पाकिस्तान के टैंकों की कब्रें बना दीं। इसके बाद नौसेना की बारी आई। बंगाल की खाड़ी पहुँचने से पहले उसे अरब सागर में अपना जलवा दिखाना था क्योंकि कराची बंदरगाह की तबाही के बिना गुजरात सुरक्षित नहीं था। 5 दिसंबर को भारतीय नौसेना की जवाबी कार्रवाई के बाद कराची बंदरगाह कई दिनों तक आग के हवाले रहा। पाक सैनिक दूर ग्वादर भाग गए, और वहां से अपना काम जारी रखा। पाकिस्तान ने अपने आधुनिक अमरीकी जलपोत पीएनएस (पाकिस्तानी नेवल शिप) गाजी पनडुब्बी को पानी में उतारा और पश्चिमी पाकिस्तान (बंगला देश) की रक्षा के लिए बंगाल की खाड़ी में डटे हमारे आईएनएस विक्रांत को ध्वस्त करने के लिए भेजा।
लेकिन पीएनएस गाजी के मंसूबे पूरे नहीं हो पाए। उसे हमारे आईएनएस राजपूत ने विशाखापट्टनम में ही ध्वस्त कर दिया। आईएनएस राजपूत अपने इंजन की खराबी के कारण यार्ड में मरम्मत के लिए खड़ा था। लेकिन कारनामा वहाँ भी कर दिखाया। आधुनिक अमरीकी पनडुब्बी पीएनएस गाजी का, खराब भारतीय युद्धपोत के घात से ध्वस्त हो जाना अमेरिका के लिए झटके से कम नहीं था। उसी के बाद इस युद्ध में अमेरिका, और फिर इंग्लैंड और सोवियत रूस का प्रवेश हुआ जो भारत के पूर्वी छोर को लक्ष्य बनाये हुए थे।
पश्चिनी छोर के समुद्री मार्ग से पाकिस्तान के घुसपैठ को रोकने की कमान अब भी भारतीय नौसेना ने संभाल राखी थी। गुजरात के तट और समुद्री सीमा से खतरा बना हुआ था। यहाँ हमारे पश्चिमी बेड़े के 14 वें फ्रिगेट स्क्वाड्रन को कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला कमांड कर रहे थे। 9 दिसम्बर की रात उत्तरी अरब सागर में तैनाती के दौरान पाकिस्तानी पनडुब्बी को निशाना बनाने से पहले नौसेना का खुकरी उनके निशाने पर आ गया... जहाँ डूबा, आज भी वहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद किसी भी युद्धपोत के डूबने की यह पहली घटना है। कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला को मरणोपरांत शौर्यचक्र दिया गया है।
इस घटना की याद में दीव में आईएनएस खुखरी मेमोरियल बनवाया गया है। यह चक्रतीर्थ समुद्र के किनारे पहाड़ी पर स्थित है। इसे देखकर ऐसा लगता है मानो कांच में बंद खुकरी की प्रतिकृति दूर तल में विश्राम करती खुकरी से शायद कोई मौन संवाद साध रही हो।
काश इसकी नाद कभी हमारे मन तक भी पहुँचे!!
अमृता मौर्य