75 साल पहले, 22 जुलाई 1947,आज ही के दिन, तिरंगे को हमारे राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता दी गई थी आईए जानते हैं तिंरगे से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
देश की शान है, हमारा तिरंगा
75 साल पहले, 22 जुलाई 1947, यानी आज ही के दिन, तिरंगे को हमारे राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता दी गई थी, पहली बार कोलकाता में फहराया गया था झंडा, अब तक 6 बार बदल चुका है स्वरूप।
आजादी को 75 साल हो गए हैं। आजादी के वर्ष आज का दिन हर हिंदुस्तानी के लिए बेहद खास था। 1947 में आज ही के दिन यानी 22 जुलाई को संविधान सभा ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को अपनाया था।
हमारे तिरंगे में केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतीक है, सफेद रंग सच्चाई, शांति और पवित्रता की निशानी और हरे रंग को संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। सफ़ेद रंग पर बने अशोक चक्र की 24 तीलियों का भी एक विशेष मतलब है, ये तीलियां इंसान के 24 गुणों को दर्शातीं हैं। तिरंगे से जुड़ी एक अहम बात ये भी है कि तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए।
अभी जो हमारा राष्ट्रीय झंडा है, उसमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं। इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। सफेद पट्टी के बीच में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र है, जिसमें 24 तीलियां हैं। लेकिन आज तिरंगे का जो स्वरूप है, वह पहले ऐसा नहीं था। यह जानना बड़ा ही दिलचस्प है कि हमारा तिरंगा शुरुआत से अब तक किन बदलावों से होकर गुजरा।
हिन्दुस्तान का पहला गैर अधिकारिक झंडा: देश का पहला ध्वज 7 अगस्त 1906 को तब के कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था। इस तिरंगे में ऊपर हरे, बीच में पीले और नीचे लाल रंग की क्षैतिज पट्टियां थी। ऊपर की हरी पट्टी में कमल के फूल बने थे, नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चांद, जबकि बीच वाली पीली पट्टी में वंदे मातरम लिखा हुआ था। पिछले दिनों आई फिल्म RRR में इस झंडे को दिखाया गया। यह फिल्म उसी दौर की कहानी है।
हिन्दुस्तान का दूसरा राष्ट्रीय ध्वज: 1907 में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा यह झंडा पेरिस में फहराया गया था। हालांकि, इस पर विवाद है कुछ लोगों का मानना है कि यह घटना 1905 की थी। यह झंडा भी पहले ध्वज की ही तरह था। हालांकि इसमें तीन रंगों के रूप में केसरिया, हरा और पीला शामिल था। साथ ही इसमें सूरज और चांद के साथ तारा भी शामिल किया गया था, जबकि कमल की जगह दूसरा फूल शामिल था। इसे एक सम्मलेन के दौरान बर्लिन में भी इसे फहराया गया था।
हिंदुस्तान का तीसरा झंडा: तीसरे ध्वज में ब्रिटिश हुकूमत की झलक साफ दिखती थी। यह 1917 में अस्तित्व में आयाथा। इस ध्वज को लोकमान्य तिलक और डॉ एनी बेसेंट ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान फहराया। इस झंडे में एक के बाद एक 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां बनी थीं। साथ ही सप्तऋषि की ही आकृति में इस पर सात सितारे बने थे। बाईं और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक था, जबकि एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी शामिल था।
हिन्दुस्तान का चौथा ध्वज 1921: 1921 में बेजवाड़ा (विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने यह झंडा बनाकर महात्मा गांधी को दिया। यह लाल और हरा रंग का था। लाल रंग हिंदू, जबकि हरा रंग मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता था। इसे देख गांधीजी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा भी जोड़ देना चाहिए। और इस तरह देश का चौथा झंडा तैयार हुआ।
हिन्दुस्तान का पांचवा ध्वज 1931: वर्ष 1931 में तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था। पांचवे ध्वज को वर्तमान स्वरूप का पूर्वज कहा जा सकता है। इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टी शामिल थी। बीच वाली सफेद पट्टी गांधीजी के चलते हुए चरखे के साथ थी। यह राष्ट्रीय भारतीय सेना का संग्राम चिह्न भी था। ये सभी ध्वज भारत के आजादी से पहले के थे।
वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा : आजादी के बाद पांचवे ध्वज का रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। वर्तमान में तिरंगे का जो स्वरूप है, उसे 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस तरह देश को वर्तमान स्वरूप में उसका राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मिला। Image credit -google
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