जब प्रधानमन्त्री मोदी बोले - 'सर्वेंट क्लास' वाली शिक्षण पद्धति में बदलाव लाएँ, फिर रवीश कुमार ने ऐसे लगा दी क्लास?
बिज़नेस क्लास भी तो अनगिनत प्रकार के स्थायी और अस्थायी सर्वेंट क्लास पर टिका होता है। क्या वहाँ यह क्लास नहीं होता? सरकारी सर्वेंट क्लास और बिज़नेस सर्वेंट क्लास में क्या अंतर है?
क्या प्रधानमंत्री यह कहना चाहते हैं कि युवा सरकारी सर्वेंट क्लास की तरफ़ न देखें ? तो यह बात साफ़ साफ़ कर दें कि नौकरी नहीं देंगे। वोट तो तब भी मिलेगा लेकिन बात तो ऐसी हो जिससे लगे कि कवि क्या कहना चाहते हैं? दस लाख नौकरियाँ देने का एलान क्या है ? स्किल इंडिया के ज़रिए ठेके पर काम करने वालों की फ़ौज तैयार की जा रही है, उसे किस प्रकार के सर्वेंट क्लास में रखा जाएगा?
अभी तक जो शिक्षा प्रणाली रही है, उसमें समस्याएँ तो हैं,
उसके बारे में प्रधानमंत्री पहली बार नहीं बोल रहे। कई बार कई प्रधानमंत्री बोल चुके हैं। हमारे शिक्षाविद बोल चुके हैं। शिक्षा प्रणाली बदलती भी रही है फिर भी उसमें एक क़िस्म की जड़ता तो रही ही है लेकिन क्या पूरी प्रणाली को एक डंडे से हाँका जा सकता है जैसे सिस्टम बेमक़सद ही चला जा रहा है।
क्या बिज़नेस की संभावना को इसी शिक्षा प्रणाली ने रोका? इसके पहले लाखों कंपनियाँ किस शिक्षा प्रणाली के असर में तैयार हुई? प्रधानमंत्री जिन आर्थिक नीतियों और कर नीतियों पर चलते हैं, वो कहाँ से आई हैं?
ऐसे ही कुछ बोल दो कि सर्वेंट क्लास वाली शिक्षण पद्धति में बदलाव लाएँ ? यूनिवर्सिटी में तो पढ़ाई ही नहीं हो रही है। तमाम कॉलेज ऐसे ही चले जा रहे हैं। उनकी बर्बादी पर बात नहीं, सुधार नहीं केवल वैचारिक और आदर्शवादी बातों को ठेला जाता रहता है।
ये ब्लॉग रैमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित पत्रकार और एनडीटीवी के प्रबंध संपादक रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है।
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