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Ravish Kumar को क्यों कहना पड़ा, Narendra Modi आजीवन चुनाव जीतते रहें लेकिन किसी भी मोदी समर्थक को यह अन्याय दिखना चाहिए की 50 हज़ार युवाओं...

Ravish Kumar Blog
         Image source-google 
रवीश कुमार एक ऐसे पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं जो सवाल पूछने के लिए प्रसिद्ध हैं। इस बार उन्होंने 'अग्निपथ योजना' को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे युवाओं से उनकी पसंद का सम्बोधन किया है।
युवाओं के नाम उनकी पसंद का संबोधन 
सरकार को एक बार सोचना चाहिए। यह बहुत ग़लत है। पचास हज़ार युवाओं की तैयारी और मेहनत पर पानी फेर दिया है। अग्निपथ के नाम पर इन भर्तियों को ख़त्म कर उनके ऊपर पाषाण प्रहार हुआ है।मोदी आजीवन चुनाव जीतते रहें लेकिन किसी भी मोदी समर्थक को यह अन्याय दिखना चाहिए। इतने सपनों को कुचल देना ठीक नहीं। 
 
ये पचास हज़ार भी तो आजीवन मोदी समर्थक हैं तो इन्हें क्यों सज़ा दी जा रही है? अच्छा हुआ इस देश में दूसरा विकल्प नहीं है वरना युवाओं को ऐसी सज़ा प्राप्त करने का सौभाग्य ही नहीं मिलता। जिस भीड़ के दम पर सब हुआं हुआं करने लगे थे, इस ख़बर से कम से कम यही देख लें कि आप भीड़ के हैं, आप भीड़ में हैं लेकिन भीड़ आपकी नहीं है। भीड़ केवल उनके लिए हैं। वह केवल मोदी की है, जैसे आप केवल मोदी के हैं। आज अगर राजनीति में धर्म का प्रचंड प्रवाह न होता तो पचास हज़ार नौकरियों के चले जाने पर कितना हंगामा होता। लोग लिखते और बोलते। मुझे यह तो दिख रहा है कि इन युवाओं के सपने कुचल दिए गए हैं मगर उससे भी ज़्यादा बुरा यह भी दिख रहा है कि इन सभी के व्हाट्स एप ग्रुप के वैचारिक साथी रिटायर्ड अंकिलों ने भी इनका साथ नहीं दिया।
 
 बाक़ी अच्छा है कि हम जैसों की भूमिका समाप्त हो गई और ऐसे विषयों से दूर आ गए। जब से दूर आए हैं, गाली भी कम पड़ती है कि नौकरी सीरीज़ कवर करके युवाओं को मोदी विरोधी बना रहा हूँ। मुझे हंसी आती थी इस बात से। मुझे पता है कि आज मोदी कह दें कि किसी को नौकरी नहीं देंगे, इस देश के युवाओं को लगेगा कि उनके फ़ायदे की बात हुई है और वे वोट देने जाएँगे। वोट देकर आएँगे तो मुझे गाली देंगे जैसे मैं रोक रहा था वोट देने से। आप मानें या न मानें अग्निवीर का फ़ैसला अपनी बालकनी और छत पर खड़े होकर थाली बजाने जैसा फ़ैसला है। थाली बजाइये। 
 
हिन्दी प्रदेश के युवाओं को नौकरी नहीं, मानसिक सुख चाहिए। और यह मानसिक सुख केवल धर्म के नाम पर बदले की राजनीति से मिलता है। अफ़सोस है कि पचास हज़ार के सपने टूट गए हैं। इस बात को ग़लत नहीं कहना है। जब आपने किसी ग़लत को ग़लत नहीं कहा तो इसे क्यों ग़लत कहना है। कमेंट में गाली देने वालों की संख्या बता देगी कि मैंने सही कहा है।
ये ब्लॉग रैमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित पत्रकार और एनडीटीवी के प्रबंध संपादक रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है।
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