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Agnipath yojana पर हिंसा कर युवाओं ने विरोध का मौक़ा गँवा दिया-Ravish Kumar

 रवीश कुमार एक ऐसे पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं जो छात्रों के सवाल को अपने प्राइम टाइम शो में दिखाते और छात्रों के सवाल को लेकर सरकार सरकार से कड़े सवाल पूछते आए हैं; लेकिन इस बार उन्होंने अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे युवाओं को ही दोषी मान रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब रवीश कुमार ने सरकार के बजाए युवाओं को दोषी ठहराया है। ऐसा क्यों हुआ आइए उनके इस लेख से जानते हैं।

Ravish Kumar
                     Image source-google 

हिंसा कर युवाओं ने विरोध का मौक़ा गँवा दिया ,जोश में युवाओं ने बड़ी ग़लती कर दी। हिंसा का रास्ता चुन कर उन्होंने ख़ुद से समाज के बड़े वर्ग को अलग कर दिया। यहाँ तक कि कई परीक्षाओं के रद्द होने औरपरीक्षा केंद्रों तक नहीं पहुँच पाने के कारण युवाओं का भी समर्थन गँवा दिया।अगर युवा अपनी बातों में सरकार और समाज को ले आते तो उनकी चिन्ता को समर्थन मिलता। अब हर कोई भड़क गया है। कोई भी बहस उनके मुद्दे पर पहुँचने से पहले ही हिंसा की बात से रास्ता बदल लेती है। 

 

हिंसा का सबसे बड़ा नुक़सान है कि दो दिनों के भीतर आंदोलन सिमट और बंट जाता है। जिन लड़कों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज होते हैं, उनके साथ कोई नहीं आता। केस में फँसने के डर से आंदोलन में शामिल दूसरे युवा रास्ता बदल लेते हैं। इसलिए हिंसा से किसी को कुछ नहीं मिलता। सरकार की संपत्ति नष्ट होती है, जनता का समय बर्बाद होता है और सारा ध्यान हिंसा पर जाता है।मुद्दे हवा हो जाते हैं।


युवाओं ने किसी की बात नहीं मानी। वे अपने ग़ुस्से की सुनने लगे। इससे सरकार को मौक़ा मिल गया कि वह अंतिम फ़ैसला बता दे। सरकार ने कह दिया कि अग्निपथ योजना वापस नहीं होगी। सेना ने भर्ती की तारीख़ निकाल दी गई। जितनी तेज़ हिंसा , उतनी तेज़ी से सरकार का फ़ैसला। सरकार को पता है कि अब युवा हिंसा करने के अपराध से भागेंगे। इसलिए बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं कि हिंसा मत करो। कम से कम किसान आंदोलन से सीखा होता। सरकार को पत्र लिखते। उनसे बात करने की माँग करते। विधायक और सांसद के घरों पर हमला करने के बजाए उनसे विनती करते कि हमारी बात सरकार तक ले जाइये। अब ये सब नहीं हो सकेगा। 

 

इसमें कोई शक नहीं कि युवाओं को बड़ा झटका लगा है। पुरानी परीक्षा भी रद्द होगी यह सुनकर दिल टूट गया है। लेकिन हिंसा ने तो सारी संभावनाएँ समाप्त कर दी। उन्होंने नैतिक बल खो दिया। राजनीतिक बल तो युवाओं के पास है भी नहीं। वे अब कभी जाति और धर्म से बाहर आकर वोट नहीं दे सकेंगे तो उस पर दिमाग़ लगाना समय की बर्बादी है। 


विपक्ष को भी इस मुद्दे पर इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं। युवाओं के किसी भी आंदोलन का साथ देकर उसे पाँच वोट नहीं मिलेगा। पिछले सारे अनुभव यही कहते हैं।

बेशक, विपक्ष को ट्विटर के माध्यम से युवाओं की बात ज़रूर उठानी चाहिए। प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए।इससे ज़्यादा करने की ज़रूरत भी नहीं थी। यही युवा नहीं चाहेंगे कि उनके आंदोलन पर दाग़ लगे कि विपक्ष चला रहा है। युवा विपक्ष की भागीदारी को दाग़ के रूप में ही देखते हैं। इसलिए उनके आंदोलन पर विपक्ष की साज़िश का आरोप लग रहा है ताकि युवा हर हाल में विपक्ष को मज़बूत न होने दे।  


जिस तरह से दैनिक जागरण ने कांग्रेस के सत्याग्रह की ख़बर पर हेडलाइन लगाई है कि युवाओं को उकसाने में लगे हैं राजनीतिक दल, उससे ज़ाहिर होता है कि अख़बार विपक्ष की किसी भी भूमिका को इसी रुप में देखेगा। मुझे नहीं लगता कि जागरण के पाठकों को इसमें बुरा लगा होगा कि एक लोकतांत्रिक देश का अख़बार विपक्ष के सत्याग्रह की ख़बर को ऐसे कैसे लिख सकता है। यही नहीं युवाओं को भी बुरा नहीं लगेगा कि उनके आंदोलन के साथ अगर विपक्ष आता है तो अख़बार ऐसे कैसे लिख सकता है कि विपक्ष उकसाने में लगा है। 

 

जिस देश के लोकतंत्र में यह मान्य हो जाए कि विपक्ष के साथ जाना या विपक्ष का साथ आना साज़िश है या दाग़ है, उस देश में विपक्ष को विविध भारती पर सुबह शाम गाने सुनने चाहिए। सरकार को पत्र लिखना चाहिए कि युवाओं की तरफ़ से पत्र लिखने को कहा गया है। इसके बाद आराम करना चाहिए। 

युवाओं, इस बात को दस बार लिखो, हिंसा से दूर रहना है। हिंसा से दूर रहना है। विपक्ष से दूर रहना है, लिखने की ज़रूरत नहीं है।वह तो आप रोज़ व्हाट्स एप में लिखते ही रहते हैं।

ये लेख रैमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित पत्रकार और एनडीटीवी के प्रबंध संपादक रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है।

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